एक तो लंगूर हो गया और दूजा हुआ बन्दर जो इधर से उधर क़सम से ऐसे कूदता फिरता है जैसा कि फ़ितरत में शुमार हो।
अरे तुमनें कभी अच्छी शुरुआत की थी, तुम भी अपना लिखा गुनगुनाते थे। चार लोग तुम्हें पहचानते थे। पर आज तुम किसी के चमचे होने से ज़्यादा कुछ नहीं रह गए हो। तुमने न जानें कितने लोगों, तुम्हारे पुरानों को खोया है।
पता नहीं ये सब करके तुम्हें क्यों मज़ा आता है!!
©Abdullah Qureshi
तुमने अपनी असलियत खोई है, तुम्हें अब क्यों लोग चाहेंगे!! तुम कभी अपनों में हुआ करते थे और अब तुम एजेंट बन गए हो। शर्म करो, कम से कम अपने लिबास की।।