सुनलो मेरी जीवन शैली बड़ी विचित्र है जन, नहीं सुने तो यही पर होगा आमरण-अनशन हमारे बीच आए कोई अगर जो हमारे मंजिले दरम्यान औलाद सगा हो, तो भी कर दूं उसका कत्लेआम अपने हित के खातिर हमनें दर्ज़नो मंदिर-मस्ज़िद तुरवाएं है, आए अगर जो मौक़े हाथ तो कई घोटाले करवाएं है, अपने हित के खातिर हमने कई नियम कानून लाएं है, उससे भी नहीं बनी तो कितनों को घर से बेघर कराएंगे
देश की दलाली क्या है, पशुओं तक की चारे खाएं हैं,
इस देश में नहीं बनी तो, स्विस बैंक में खाते खुलवाए है।
अगर जो आ गई CBI तो उसका भी बोली लगाऊंगा
इस देश की मिट्टी क्या है, इसकी इज्ज़त तक को विकवाऊंगा
कलयुग के इस दौर में हमने रावण को भी पछाड़ा है, क्योंकि अपहरण और फिरौतीओं के बाद भी हमने अपने हित के खातिर कितनो को मरवाया है,
जितने बूरे कर्म करोगे उतने ही पाओगे धन आजकल हम नेताओं का यही है, जरूरी पाठ्यक्रम ।
#आज मैं आपलोगों को एक कविता सुनाने जा रहा हूं जिसका सिर्षक है।
नेता बनाम कलयुग का रावण ।