ये महफ़िल ही मुकम्मल हो गयी है
कि बात उसकी मुकम्मल हो गयी है
मगर लौटेंगे फिर से पास तेरे
अभी छुट्टी मुकम्मल हो गयी है
सफ़र तो और भी चलना था लम्बा
सड़क जल्दी मुकम्मल हो गयी है
कहानी इश्क़ की मुश्किल बड़ी थी
मगर फिर भी मुकम्मल हो गयी है
पकड़ कर हाथ मेरा फिर वो बोली
कि अब लड़की मुक़म्मल हो गयी है
तिरे आने की देरी हो रही थी
लो अब सर्दी मुक़म्मल हो गयी है
©Saad Ahmad ( سعد احمد )
#Hunarbaaz