मोहब्बतों का समंदर भी है इसी दुनियाँ में फिर भी न | हिंदी शायरी

"मोहब्बतों का समंदर भी है इसी दुनियाँ में फिर भी ना जाने क्यूँ लोग नफरतों के दरिया में तैरते रहते हैं ©Mohd Bukaram Badshah Khan"

 मोहब्बतों का समंदर भी है इसी दुनियाँ में

फिर भी ना जाने क्यूँ लोग नफरतों के दरिया में तैरते रहते हैं

©Mohd Bukaram Badshah Khan

मोहब्बतों का समंदर भी है इसी दुनियाँ में फिर भी ना जाने क्यूँ लोग नफरतों के दरिया में तैरते रहते हैं ©Mohd Bukaram Badshah Khan

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