रंग लिखता हूँ
जीवन जो लगे कभी कि थोड़ा बदरंग है।
मैं उसमे आज जीवन के सब रंग लिखता हूँ।
लाल जो लगे कभी कि जीवन का क्रोध है।
मैं उसमे युवा का उमड़ता जोश लिखता हूँ।
पीला जो लगे कभी कि कोई बीमार सा है।
मैं उसमे तुम्हारा सूर्य सा तेज लिखता हूँ।
नीला जो लगे कभी कि रक्त जम सा गया है।
मैं तुम्हारी संभावनाओं का आकाश लिखता हूँ।
सफेद जो लगे कभी कि उसमें कुछ दाग सा है।
मैं तुम्हारी शुद्धता का विश्वास लिखता हूँ।
गुलाबी जो लगे कभी कि कुछ कमजोर सा है।
मैं तुम्हें जीवन मे प्रेम का उपहार लिखता हूँ।
केसरिया-हरा जो लगे कभी कि हिन्दू-मुसलमां है।
मैं इन्हें अपने तिरंगे की शान लिखता हूँ।
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