चल पड़ी है ढलने को उम्र की अब यह शाम
मनचली अटखेलियों को लिए ढूंढती थी जो मकसद गुमनाम
कभी सपनों में जीती और कभी सपनों को जिताती
जिंदगी के रास्तों पर अपने निशान रखती और छुपाती
चाहा मन ने संजोई हुई हर तमन्ना को पाना
बुनती रही खुद के ही खयालों का ताना बाना
जिया हर लम्हे को उमंगों से भरा
वो अतीत है मेरे खुशियों का गवाह
वक्त का पहिया चलता है सबके लिए समान
है तुझमें गर हौंसला तो ले हाथ में उसकी कमान
न कोई भी सपना तुझे दूर होगा
है तेरी जो अभिलाषा ,वक्त पूरी करने को मजबूर होगा
चलता जा तू उम्मीद का दामन थामे हुए
है दिए राहों में तेरे रास्तों को संभाले हुए
हौसलों के आगे न कोई सपना चकनाचूर होगा
है रोशनी वहीं जहां तेरे लिए कोहिनूर होगा
©एहसास
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