शोभा (दोहे)
शोभा देती है नहीं, अब तुमको ये बात।
दुर्जन वाले काम कर, देते हो आघात।।
कटु वचन नहीं बोलिये, हिय में होती पीर।
बाणों जैसे ही चुभें, खोते भी फिर धीर।।
क्या शोभा देती तुम्हें, जो देते हो तंज।
भान नहीं इसका तुम्हें, होता कितना रंज।।
मधुर वचन जो बोलते, ये शोभा है मान।
ऐसे ही जो तुम रहो, खुश होते भगवान।।
गलती पर जो डांँटते, ये उनका है फर्ज।
शोभा अपनी है यही, माने उनका कर्ज।।
शोभा ये जिससे बढ़े, उसे कहें संस्कार।
निश्छल निर्मल मन रहे, सुंदर हो व्यवहार।।
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देवेश दीक्षित
©Devesh Dixit
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शोभा (दोहे)
शोभा देती है नहीं, अब तुमको ये बात।
दुर्जन वाले काम कर, देते हो आघात।।
कटु वचन नहीं बोलिये, हिय में होती पीर।