लाचारी ...बहुत गहराई तक समा जाती है इंसान की ज़िन्दगी में..बैठ जाती है दिमाग के किसी कोने को हाईजैक करके और फिर सारी नसों को एक एक करके सुई चुभोती है … कभी कोई नस में सुई ज़्यादा चुभ गयी तो चींख आँखों से निकल जाती है ...फितरत है हमारी जब तक कोई चीज़ में इज़ाफ़ा न हो तो धंधा मंदा होता है...इसलिए हम लाचारी का धंधा अच्छे से करते है..बढ़ती जाती है दिन ब दिन साल दर साल कई गुना हमारे अंदर और जकड लेती है हमको ..एक उम्र निकल जाती है इसकी कैद से रिहा होने में….
मुझे भी पकड़ा है इसने ३६ सालों से ...कहती है अभी ३६ बाकी हैं ..
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