अपने ही शहर में रहे,हम अजनबी बनकर। अपनो के घर मे क | हिंदी कविता Video

"अपने ही शहर में रहे,हम अजनबी बनकर। अपनो के घर मे कुछ दिन पनाह भी ना मिली। मेरी गलियों से गुजर जाते है,निगाहे नीची करके। पता नही क्यों,रायचंदो से सलाह भी ना मिली। खुश रहने की कोशिश करे भी तो कैसे करें जिंदगी के सफर में कभी किस्मत की मर्जी ना मिली। हिम्मत हारकर इस तरह से बैठे है,क्या करें। टूटे हुए आइने को,फिर से जोड़ने की ताकत ना मिली। झेलते रहे उम्र भर अपनो के जुल्म लेकिन, सजा तो मिली,पर गलतियों की वजह ना मिली। जो चाहा वो मिल जाये,ऐसी किस्मत कहाँ अपनी। इच्छा के मुताबिक किसी को मौत भी ना मिली।। अब तुम बताओ बयां कैसे करे दर्द-ए हाल अपना। काम बहुत आये लोगो के,पर कभी दिल मे जगह ना मिली ममता गुप्ता✍️ ©mamta gupta "

अपने ही शहर में रहे,हम अजनबी बनकर। अपनो के घर मे कुछ दिन पनाह भी ना मिली। मेरी गलियों से गुजर जाते है,निगाहे नीची करके। पता नही क्यों,रायचंदो से सलाह भी ना मिली। खुश रहने की कोशिश करे भी तो कैसे करें जिंदगी के सफर में कभी किस्मत की मर्जी ना मिली। हिम्मत हारकर इस तरह से बैठे है,क्या करें। टूटे हुए आइने को,फिर से जोड़ने की ताकत ना मिली। झेलते रहे उम्र भर अपनो के जुल्म लेकिन, सजा तो मिली,पर गलतियों की वजह ना मिली। जो चाहा वो मिल जाये,ऐसी किस्मत कहाँ अपनी। इच्छा के मुताबिक किसी को मौत भी ना मिली।। अब तुम बताओ बयां कैसे करे दर्द-ए हाल अपना। काम बहुत आये लोगो के,पर कभी दिल मे जगह ना मिली ममता गुप्ता✍️ ©mamta gupta

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