मैं इत्र की शीशी जैसी हूं
गर टूट भी जाऊं महकूंगी,
तुम गौर से सुनना ख्वाबों में
मैं यादों में भी चहकूंगी ।।
और टूट भी जाएं सांसे अब
अल्फाज नहीं मिटने वाले ,
हर लफ्ज़ को पढ़ना सिद्धत से
मैं शब्दों में भी दहकूंगी ।
©Matangi Upadhyay( चिंका )
मैं इत्र की शीशी जैसी हूं
गर टूट भी जाऊं महकूंगी,
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