फिर एक बार 1990 का मनज़र याद आया
फिर एक बार हमने अपने आप को बेबस ओर लाचार पाया
फिर से आज चिनारो मे गूजती है मोत की चीखे
फिर आज उस गुलिसतान को हमने वीरान पाया
फिर एक बार 1990 का मनज़र याद आया
तडपते है फिर से बचचे अपने मा बाप के खातिर
फिर से हमने मासूम बचचो को यतीम पाया
हर तरफ सुनाई देती है फिरसे मोत की चीखे
अपने हमसाये को ही हमने फिर से अपना कातिल पाया
फिर एक बार 1990 का मनज़र याद आया
फिर एक बार हमने अपने आप को बेबस ओर लाचार पाया
©deepak raina
#poem on kashmir
#Roses