रात भर इक चाॅंद ने
हुस्न की चाॅंदनी बिखेर
अपने जादू में बांध दिया।
दूर सुम्बुल ने झूम कर
शब को नशीला कर दिया।।
गज़ाल चश्म की आंखों में
हो गए गुम,
इश्क़ का चढ़ा कैसा
तालातुम ।
फलक में उड़ चला,वो है मेरे रू- बरु,
इश्क़ के फ़ाम में रंगे दोनों ख़ूब- रू।
गर्म सांसों में बसी हैं सांसे,
थम जाना दहर
माहताब तू भी थम जा,
देर से होने दे सहर।।
©Mona Chhabra
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