शौक...नशा....कैंसर...मौत
तू जो सिगरेट पी रहा है?
भीतर धुएं में, जी रहा है?
चुपके कैंसर, पांव पसारे,
आमंत्रण! तू दे रहा है।।
गुटखा, शराब, बीड़ी, सिगरेट,
पीयो मत, प्यारे नर नारी,
जहर में डुबा रहे क्यों आंतें,
सड़ा रहे अंगों की क्यारी ।।
शुरू में दिन की एक सुलगती,
पता न चलता, हो गई चार,
चुपके जेब में आ गई डिब्बी,
जमा के तुझ पर निज अधिकार।।
तेरी दशा पे हंसता कैंसर!
तिल–तिल भीतर, तुझे मारता,
’स्वतंत्र’ ’कैदी’, बना तेरा मन,
बरबादी की राह चलाता।।
लड़का क्या लड़की, सब बहके
नशे में डूबे, धुवें में दहके,
लुटा स्वास्थ्य, सम्मान गिराया,
वंश भी आगे, रोगी आया।।
अपने मन को करो संयमित,
छोड़...नशे की राह अनियंत्रित,
जटिल ’काल’ है तेरे पीछे,
’मृत्यु’ भी जिसके भय से भयभीत।।
©Tara Chandra
#smokingkills