"उसकी जान कोई और था ,मैं उसे अपनी जान मानता रहा ,
उसे भी मुझ से मोहब्बत है , उसकी ये बात मानता रहा ।
उसकी हरेक ग़ज़ल में , मैं ख़ुद को तलाशता रहा ,
उसकी हरेक हर्फ़ में उसकी जान को झांकता रहा ।
ताउम्र उसके साथ बिताने का , ख्वाब मैं सजाता रहा ,
गुलाब के चक्कर में , मैं काटों से इश्क़ लड़ाता रहा ।
सादगी तो देखो हमारी , सच्चाई जान कर भी अनजान रहा ,
उसकी झूठी फरेबी वायदों के पीछे भागता रहा ।
:- Abhi Saxena
©Abhi saxena"