ए मोहब्बत करने वालो मुझ पर इल्जाम ना लगाओ
उससे कहदो रिशने दो अभी खून को ज़ख्म ही तो है
मरहम ना लगाओ,
मेरी शामे अक्सर तुम्हारे नाम पर आकर खो जाती है
मै मै नहीं रहता जब कभी तुम्हारी याद तड़पाती है !
तुम्हारे जाने के बाद अपने लहू के हरेक कतरे को
संभाला था मैंने आज सिर्फ दाग़ बचे है
तुम्हारे ख्वाब तो सलामत है मेरे तो सारे ख्वाब किसी की
चौखट पर नीलाम हो चुके है,
हमने खोया है अपना क्या क्या तुम्हे बताये
एहसासो की दुनिया भ्रम जैसी लगती है तुम्ही कहो कैसे तुम्हे अपने दर्द जताये,
सबको लगता है यूँ ही पागल हो गया है इश्क़ की दीवार पर सर पटक पटक कर दीवाना हो गया है !
ये सब कुछ भी शायद लाजमी है मगर कब तलक
मुझे और ना अब सताओ,
ए मोहब्बत करने वालो मुझ पर इल्जाम ना लगाओ !
©Rohit Kumar
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