हम लोग जन्म को लेकर बेकार की बहस में उलझे रहते हैं।कोई कहता है एक ही जन्म है कोई कहता है कई जन्म होते हैं। आगे भी जन्म लेना पड़ेगा और पहले भी तुम्हारा पुराना जन्म था। और इसी के चलते हम लोग बहस से मारपीट तक उतर आते हैं लेकिन अगर गौर से देखें तो ये हम कर क्या रहें हैं? अगर एक ही जन्म है अगर हम सब को एक ही जीवन मिला है तो फिर ये लड़ाई झगड़ा क्यूं ये इतना मार पीट क्यूं?
क्यूंकि अगर सच यही है कि एक ही जन्म है तो हमें अपनी सीमितता को तुरंत देखना चाहिए। हम ये सब क्यूं करे हमें तो फिर इस जीवन का जितना हो सके उतना उपयोग करना चाहिए । इस जीवन की हर ऊंची से ऊंची संभावना देखनी चाहिए । जीवन को जितना हो सके उतना जी भर कर जी लेना चाहिए क्योंकि हमारा अस्तित्व बस कुछ दिन कुछ साल का ही और है फिर हम नही होंगे और हमारा अनुभव ये कहता है कि मौत का तो कोई निश्चित समय भी तय नहीं है कि 70 साल बाद आएगी या अगले पल ही घट जाए।
हर पल जीवन का आनंद उठाना चाहिए की मैं जीवित हूं और क्या चाहिए। हम दुखों के दलदल में क्यूं फसे रहते हैं। पूरा जीवन अगर दुख में ही चला जायेगा तो हमने जीया ही क्या और किया ही क्या यहां आके भी और जन्म लेके भी । हम ये सब कैसे बेकार की बातों में फंसे हैं।
और अगर एक जन्म नहीं है और कई अनेक जन्म लेने पड़ेंगे तो तो फिर तो हमें दोगुनी सजगता से और दोगुनी जागरूकता से जीवन को जीना चाहिए क्योंकि बहिखाते का एक नियम है whatever is remaning will carry forward to next account यही नियम हमारे जन्मों पर भी लागू होता है तो अगर हम जीवन को समग्रता से और इतनी जागरूकता से जिए की दुख आसपास ही न फटक पाए और जीवन का आनंद बढ़ता ही चला जाए तो फिर न हमें डरने की जरूरत है न ही बहस करने की चूंकि अगर इस जीवन में हमने शांति की एक झलक भी देख ली सुख की एक छाया भी हमारे ऊपर पड़ गई तो अगला जन्म तो उसी शांति और छाया में घटेगा और धीरे धीरे वो शांति आनंद में बदल जायेगी और हमारा ध्येय पूरा हो जाएगा
लेकिन वहीं अगर इस जीवन में ही शांति न कमा सके खुशी की झलक न ले सके और दुख के पहाड़ नफरत के पहाड़ ही बनाने में अपनी सारी ऊर्जा लगा दी तो फिर ये पहाड़ ही पिघलकर दलदल रूपी ज्वालामुखी बन जायेंगे जिसके दलदल में तुम आज फंसना शुरू करोगे और आज जलना शुरू करोगे और आने वाले हर जन्म में इसी दलदल में फंसते और जलते चले जाओगे। क्यूंकि तुम्हारे पुराने बहिखाते तुम्हारी यही कमाई दिखाएंगे।
©Kunal Tanwar
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