मेरे अन्दर अब न अल्फाजो की नदी उफनती है.. अब न गी

"मेरे अन्दर अब न अल्फाजो की नदी उफनती है.. अब न गीत बनते हैं मुझसे,न ही गजल बनती है.. कविराज " मधुकर ""

 मेरे अन्दर अब न अल्फाजो की नदी उफनती है.. 
अब न गीत बनते हैं मुझसे,न ही गजल बनती है.. 

कविराज " मधुकर "

मेरे अन्दर अब न अल्फाजो की नदी उफनती है.. अब न गीत बनते हैं मुझसे,न ही गजल बनती है.. कविराज " मधुकर "

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