अरे ओ कुसुम, पतझड़ के मौसम, कुछ छुटा तो नही? चं | हिंदी Poetry Video

"अरे ओ कुसुम, पतझड़ के मौसम, कुछ छुटा तो नही? चंद दिन की जिंदगी में, कोई रूठा तो नहीं? तरुवर के जिस्म पर, जो हिस्सा था तेरा, तेरे टुट जाने से, उसे दुखता तो नहीं? सूरज की किरने जो, तुझको लुभाती थी, वो खग और मृग, जो पास तेरे आती थी, तेरे गुज़र जाने से, तुझे भूले तो नहीं? वो खेत की मिट्टी, और पनपते नए पुष्प, तेरे छोड़ जाने से, तुझसे इर्षया तो नहीं? चंद लम्हों की धरोहर, ये नन्ही सी जिन्दि, फिर मौत के आने से, लगा डर तो नहीं? ©Trisha09 "

अरे ओ कुसुम, पतझड़ के मौसम, कुछ छुटा तो नही? चंद दिन की जिंदगी में, कोई रूठा तो नहीं? तरुवर के जिस्म पर, जो हिस्सा था तेरा, तेरे टुट जाने से, उसे दुखता तो नहीं? सूरज की किरने जो, तुझको लुभाती थी, वो खग और मृग, जो पास तेरे आती थी, तेरे गुज़र जाने से, तुझे भूले तो नहीं? वो खेत की मिट्टी, और पनपते नए पुष्प, तेरे छोड़ जाने से, तुझसे इर्षया तो नहीं? चंद लम्हों की धरोहर, ये नन्ही सी जिन्दि, फिर मौत के आने से, लगा डर तो नहीं? ©Trisha09

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