संबंधो की गझिन बुनाई ग्रंथि भूरि हर सूत्र लगे हैं | हिंदी कविता Video

"संबंधो की गझिन बुनाई ग्रंथि भूरि हर सूत्र लगे हैं एक सिरा सुलझा ना पाऊँ अन्य ताँत उलझे उलझे हैं कैसे बुनुँ प्रेम बंधन मैं गांठ सभी सुलझाऊँ कैसे? अपनों को मैं पाऊँ कैसे? मैं अनुदार दिखूँ किस कारण किया स्वयं को हर पल अर्पण शब्दों मे क्यूँ व्यक्त है करना भावों में बिखरा है कण कण प्रश्नों का क्यों उत्तर दूँ मैं सबको ही बहलाऊँ कैसे? गांठ सभी सुलझाऊँ कैसे? अपनों को मैं पाऊँ कैसे? जो मुझमें दर्पण से बसते मुझ पर नहीं कसौटी कसते नही कहकहा किए हार पर जीत में द्वेष के भाव ना भरते ऐसे में अपने की परिभाषा मात्र रक्त से लाऊँ कैसे? गांठ सभी सुलझाऊँ कैसे? अपनों को मैं पाऊँ कैसे? Preeti_9220 ©काव्यामृत कोष "

संबंधो की गझिन बुनाई ग्रंथि भूरि हर सूत्र लगे हैं एक सिरा सुलझा ना पाऊँ अन्य ताँत उलझे उलझे हैं कैसे बुनुँ प्रेम बंधन मैं गांठ सभी सुलझाऊँ कैसे? अपनों को मैं पाऊँ कैसे? मैं अनुदार दिखूँ किस कारण किया स्वयं को हर पल अर्पण शब्दों मे क्यूँ व्यक्त है करना भावों में बिखरा है कण कण प्रश्नों का क्यों उत्तर दूँ मैं सबको ही बहलाऊँ कैसे? गांठ सभी सुलझाऊँ कैसे? अपनों को मैं पाऊँ कैसे? जो मुझमें दर्पण से बसते मुझ पर नहीं कसौटी कसते नही कहकहा किए हार पर जीत में द्वेष के भाव ना भरते ऐसे में अपने की परिभाषा मात्र रक्त से लाऊँ कैसे? गांठ सभी सुलझाऊँ कैसे? अपनों को मैं पाऊँ कैसे? Preeti_9220 ©काव्यामृत कोष

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