पूजी जाती है कंजक रूप में,
यहाँ हर कन्या देवी अवतार है।
फ़िर क्यों उठती है चीख़े इनकी,
अस्मत क्यों होती तार तार है?
ऐसे कुकर्मों से ही आज हुई,
मानवता भी ख़ुद शर्मसार है।
अपराधी को मिल जाता पुनः,
समाज में कैसे सत्कार है?
शर्म के पर्दे उतरे है इनके और,
कहते है हम 'आज़ाद' है!
©Ritika Vijay Shrivastava
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