हर महीने उसके वो पाँच दर्द भरे दिन, जिनको तुम कहते | हिंदी Poetry

"हर महीने उसके वो पाँच दर्द भरे दिन, जिनको तुम कहते हो वो अपवित्र हैं, शायद अपवित्र वो नहीं, तुम्हारी सोच हैं, उसे तो पीड़ा दी हैं, उस भगवान् ने, जिसकी वजह से तुम्हारा वजूद हैं, अगर उसके ज़िस्म में वो पांच दिन ना रहे, तो शायद सृष्टि का की अंश ना हो, तुमने जिससे जन्म लिया, तुमने उसे ही अपवित्र बता दिया, उसके ज़िस्म ने सह लिया उसके दर्द को, तो क्यों वो तुम्हारी गन्दी मानसिकता को सहे वो.....!"

 हर महीने उसके वो पाँच दर्द भरे दिन,
जिनको तुम कहते हो वो अपवित्र हैं,
शायद अपवित्र वो नहीं, तुम्हारी सोच हैं,
उसे तो पीड़ा दी हैं, उस भगवान् ने,
जिसकी वजह से तुम्हारा वजूद हैं,
अगर उसके ज़िस्म में वो पांच दिन ना रहे,
तो शायद सृष्टि का की अंश ना हो,
तुमने जिससे जन्म लिया, तुमने उसे ही अपवित्र बता दिया,
उसके ज़िस्म ने सह लिया उसके दर्द को,
तो क्यों वो तुम्हारी गन्दी मानसिकता को सहे वो.....!

हर महीने उसके वो पाँच दर्द भरे दिन, जिनको तुम कहते हो वो अपवित्र हैं, शायद अपवित्र वो नहीं, तुम्हारी सोच हैं, उसे तो पीड़ा दी हैं, उस भगवान् ने, जिसकी वजह से तुम्हारा वजूद हैं, अगर उसके ज़िस्म में वो पांच दिन ना रहे, तो शायद सृष्टि का की अंश ना हो, तुमने जिससे जन्म लिया, तुमने उसे ही अपवित्र बता दिया, उसके ज़िस्म ने सह लिया उसके दर्द को, तो क्यों वो तुम्हारी गन्दी मानसिकता को सहे वो.....!

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