जब तक किसी पापी व्यक्ति का
किसी न किसी प्रकार से
पाप,पुण्य बराबर रहता है तब तक व्यक्ति पाप कर्म करने में सक्षम रहता है
जैसे ही पाप पुण्य से अधिक होता है बैसे ही व्यक्ति
असमर्थता की ओर अग्रसर होने लगता है
और अन्त में पतन को प्राप्त होता है
©Sandeep kumar Sakhawar
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