आग
उठती लपटें धुआँ उगलती
जब जलती है आग
कोई देखकर घेरे उसको
कोई रहा है भाग
किसी को जीवन दान करे यह
किसी को देती कष्ट
तपकर कोई स्वर्ण कहलाता
कोई होता है नस्ट
धधक रही हो अगर हृदय में
बनकर के यह ज्वाला
खतरोंसे है मनुज खेलता
बन जाता मतवाला
यही सृजन की जननी बेखुद
यही मार्ग विध्वंशक
पंच तत्व में शामिल है यह
सभी झुकाएँ मस्तक
©Sunil Kumar Maurya Bekhud
#आग