आग उठती लपटें धुआँ उगलती जब जलती है आग कोई देखकर | हिंदी कविता

"आग उठती लपटें धुआँ उगलती जब जलती है आग कोई देखकर घेरे उसको कोई रहा है भाग किसी को जीवन दान करे यह किसी को देती कष्ट तपकर कोई स्वर्ण कहलाता कोई होता है नस्ट धधक रही हो अगर हृदय में बनकर के यह ज्वाला खतरोंसे है मनुज खेलता बन जाता मतवाला यही सृजन की जननी बेखुद यही मार्ग विध्वंशक पंच तत्व में शामिल है यह सभी झुकाएँ मस्तक ©Sunil Kumar Maurya Bekhud"

 आग

उठती लपटें धुआँ उगलती
जब जलती है आग
कोई देखकर घेरे उसको
कोई रहा है भाग

किसी को जीवन दान करे यह
किसी को देती कष्ट
तपकर कोई स्वर्ण कहलाता
कोई होता है नस्ट

धधक रही हो अगर हृदय में
बनकर के यह ज्वाला
खतरोंसे है मनुज  खेलता
बन जाता मतवाला

यही सृजन की जननी बेखुद
यही मार्ग विध्वंशक
पंच तत्व में शामिल है यह
सभी झुकाएँ मस्तक

©Sunil Kumar Maurya Bekhud

आग उठती लपटें धुआँ उगलती जब जलती है आग कोई देखकर घेरे उसको कोई रहा है भाग किसी को जीवन दान करे यह किसी को देती कष्ट तपकर कोई स्वर्ण कहलाता कोई होता है नस्ट धधक रही हो अगर हृदय में बनकर के यह ज्वाला खतरोंसे है मनुज खेलता बन जाता मतवाला यही सृजन की जननी बेखुद यही मार्ग विध्वंशक पंच तत्व में शामिल है यह सभी झुकाएँ मस्तक ©Sunil Kumar Maurya Bekhud

#आग

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