#FourlinePoetry मुक्तक दरबारी कवियों का कोई, नै

"#FourlinePoetry मुक्तक दरबारी कवियों का कोई, नैतिक स्वाभिमान नहीं है। जनपीड़ा को स्वर दे ऐसा, उनका कोई गान नहीं है। सिर्फ तमाशा बंदर सा ही, खेल मदारी का असली, मंचों पर कुछ कवियों को अब दायित्वों का भान नहीं है। ©N.K. Sharma"

 #FourlinePoetry  मुक्तक 

दरबारी कवियों का कोई,
नैतिक  स्वाभिमान नहीं है। 
जनपीड़ा को स्वर दे ऐसा,
उनका कोई गान नहीं है।
सिर्फ तमाशा बंदर सा ही,
खेल मदारी का असली,
मंचों पर कुछ कवियों को अब
दायित्वों का भान नहीं है।

©N.K. Sharma

#FourlinePoetry मुक्तक दरबारी कवियों का कोई, नैतिक स्वाभिमान नहीं है। जनपीड़ा को स्वर दे ऐसा, उनका कोई गान नहीं है। सिर्फ तमाशा बंदर सा ही, खेल मदारी का असली, मंचों पर कुछ कवियों को अब दायित्वों का भान नहीं है। ©N.K. Sharma

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