दो चार लफ्ज़ प्यार के लेकर हम क्या करेंगे,
देनी है तो वफ़ा की मुकम्मल किताब दे दो।
ताक़त अपने लफ्ज़ों में डालो, आवाज में नहीं,
क्योंकि फसल बारिश से उगती है, बाढ़ से नही।
मुझ से खुशनसीब हैं मेरे लिखे हुए ये लफ्ज़,
जिनको कुछ देर तक पढेगी, निगाह तेरी।
लफ्ज मगरुर हो जायें, चलता है,
मगर स्वभाव मगरुर हो जाये तो खलता है।