आग सीनें में सुलग कर है सताती। आँख से नींदें चुरा | हिंदी कविता

"आग सीनें में सुलग कर है सताती। आँख से नींदें चुरा कर भ्रम बढ़ाती। चैन मिल पाता कहाँ है ज़िंदगी भर- काम-काजी लड़कियाँ घर कब बसाती? ©Rajan Singh"

 आग सीनें में सुलग कर है सताती।
आँख से नींदें चुरा कर भ्रम बढ़ाती।
चैन मिल पाता कहाँ है ज़िंदगी भर-
काम-काजी लड़कियाँ घर कब बसाती?

©Rajan Singh

आग सीनें में सुलग कर है सताती। आँख से नींदें चुरा कर भ्रम बढ़ाती। चैन मिल पाता कहाँ है ज़िंदगी भर- काम-काजी लड़कियाँ घर कब बसाती? ©Rajan Singh

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