तपती धोरों की रेत
दादी की एड़ियों से फटे खेत
उष्ण धरती की तपन
धूमिल धूसर सब गगन
लू के थपेड़ों से परेशान जन
मुरझाए सूखे वन, उपवन
मस्ती में झूमते बच्चों का शोर
मेरे इंतजार में नन्हीं गोरैया,मोर
मैं ईश से इन सबकी पहली गुजारिश हु
पहचान गए क्या मुझे मैं पहली बारिश हुं।।
देखो कितने आतुर हैं सब मेरा करने को स्वागत
काका ने कोल्हू जमाकर सजा दी घर की छत
धारती पुत्र भी खाद बीज संग बुआई को तैयार हैं
छोटे बड़े बच्चे और बूढ़े सबको मेरा इंतजार हैं।।
महारानी सी आई मैं मेघों के सुंदर रथ पर
बारिश के मोतियों को खूब लुटाती मैं सब पर
दमक दामिनी जोर जोर से बांध रही ऐसा समां
कोयल कूक कूक कर देखो गा रही मेरी महिमा।।
©Arvind Baroodi
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