बहन के सपनों की डोली सजी ही थी कि, उम्मीदों का ज़ना

"बहन के सपनों की डोली सजी ही थी कि, उम्मीदों का ज़नाज़ा उठ गया... पास अनजाना साया पाकर, वो शरीर फिर ठिठुर गया ।।"

 बहन के सपनों की डोली सजी ही थी कि, उम्मीदों का ज़नाज़ा उठ गया...
पास अनजाना साया पाकर, वो शरीर फिर ठिठुर गया
।।

बहन के सपनों की डोली सजी ही थी कि, उम्मीदों का ज़नाज़ा उठ गया... पास अनजाना साया पाकर, वो शरीर फिर ठिठुर गया ।।

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