खंजर पर पांव रखे गए, तूफ़ानों ने मेरा पर रख लिया
वालिद की नजरों से उतरा तो भाईयों ने मेरा घर रख लिया.
ख्वाहिशों ने दम तोड़ दिया, कहानी अधूरी रह गई
मेरे हिस्से का निवाला अम्मा ने घर से बाहर रख लिया
बुलंदी पर पहुंचते गए वो मेरा नाम मिटता गया
किसीने मेरी आजादी रख ली, किसीने मेरा हक रख लिया,
मेरा नाम लेने पर अब मनाही है उस घर मे
किसीने जला दिया खत किसीने तस्वीर पर कपड़ा ढक दिया
ग़ज़लों तलक को नोच कर खा लिया गया
किसीने रदीफ़ पे थूका किसीने मकते को मसल लिया
बीच महफिल में बे लिबास हुई है जिंदगी मेरी
किसीने नजरों से पी लिया किसीने ठहाकों से हस लिया
एक अर्से तक उछाली गई है मासूमियत मेरी
किसीने ठोकरों पर रख लिया किसीने दिल रख लिया
बनके चिथड़े सारे शहर उड़ा हू मैं
किसीने दास्तान रख ली तो किसीने मतलब रख लिया.
हकीकत
©Haquikat
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