पराये घर से आई, पराये घर जाने तक कहानी है
अपना घर किसे कहे ये दुविधा हर औरत की पहचानी है।
जन्म लिया वो पिता का , जहा भेजी वो घर पति का होता है।
क्यू एक औरत का कोई घर नही होता है।
हम उस ईट पत्थर के मकान को संजोते है
प्यार के बीज घर मे बोते है
पर कहने को अपना एक कोना नही होता
क्यू एक औरत का कोई घर नही होता।
surbhi Ghuraiya....🖋
©शब्द...
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