इक बहती हुई नदी
अकेली नहीं थी
मुझे साथ ले चली थी
उसे छुआ तो
वह भारी लग रही थी किसी बोझ से,
शायद सब के लिए
अधूरे स्वप्न.. ख्याल..
अपनी इच्छामृत्यु से लदे देह तक
कितना कुछ मिला था इस पानी में..
.
और मेरे लिए
हर अपराधबोज से बेखबर
मेरे और तुम्हारे मिल जाने की
कामना करते हुए
चूमकर बहते पानी में फेंका हुआ इक सिक्का
©Mishty_miss_tea
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