अनंत कुछ है कहने को ऐ मेरे ज़ाकिर
तुम हमारे इलाके में आते ही नहीं हो
अब बादल पानी तो बरसाते है
पर तुम बिजलियां गिराते ही नहीं हो
अब नहीं छाती काली घटाएं हमारे नैनो में
तुम छत पर केश सुखाने आते ही नहीं हो
जमाने से शहर हमारा वीरान पड़ा है
बहुत खत लिए तुम्हे पर तुम आते ही नहीं हो
तुम्हे पता है , मै कॉलेज जाने लगा हूं
बिन मुराद के नए यार बनाने लगा हूं
मै जमघट में भी अकेला हो जाता हूं
तेरा ज़िक्र होते ही , तेरे ख्यालों में खो जाता हूं
मैंने दोस्तो को बताया है काफी कुछ तुम्हारे बारे में
मुलाक़ात की जिद करते है तो बहाने बना देता हूं ..
©Everlasting Alfaaz
अनंत कुछ है कहने को ऐ मेरे ज़ाकिर
तुम हमारे इलाके में आते ही नहीं हो
अब बादल पानी तो बरसाते है
पर तुम बिजलियां गिराते ही नहीं हो
अब नहीं छाती काली घटाएं हमारे नैनो में
तुम छत पर केश सुखाने आते ही नहीं हो