मंजिल तो सबकी एक है बस राख होना बाकी है। रास

"मंजिल तो सबकी एक है बस राख होना बाकी है। रास्ते सबके अलग - अलग है। बस ख़ाख होना बाकी हैं। ©Gabu Ashish"

 मंजिल तो 
सबकी एक है 
बस राख होना 
बाकी है।

  रास्ते सबके
अलग - अलग है।
बस ख़ाख होना बाकी हैं।

©Gabu Ashish

मंजिल तो सबकी एक है बस राख होना बाकी है। रास्ते सबके अलग - अलग है। बस ख़ाख होना बाकी हैं। ©Gabu Ashish

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