ये जिंदगी बता तु मुझसे क्या चाहती है
जो हांसिल उससे में खुश नहीं
जो खुशी है मेरी तू हासिल होने नहीं देती
हारना मुझे मंजूर नहीं
जीतने तू देती नहीं
सब्र तो बहुत है मुझमें पर
टूट जाता है हर दफा तेरी पहेलियों के आगे
ख़्वाब सजाता हूँ जब भी सुनहरे
तू तोड़ देती है काँच की तरह
मैं ख्वाइसें आसमाँ की ऊंचाइयों को छुने की करता हूँ
और तू जमी हर बार जमीं पर ला पटक रखती है
ये जिंदगी बता तू मुझसे क्या चाहती है
©Shivsundar Singh
जिंदगी बता तू मुझसे क्या चाहती है
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