उठा सवेरे देख कर मैं।
उषाकाल का समय रहा ।
झिलमिल करते देख पल्लव को।
ऐंसा समय और कहां ।
तभी मन को एक चिन्तन भाया।
उठा कलम और कागज को।
छोटा सा ये खेत मेरा।
कलम से हल इसमे लगया।
बोया मन के बीजों को।
तनिक निकला सूरज धरा मै ।
मन मुग्ध हुआ मन चिंतन से थोड़ा।
रचित रचना का निर्माण हुआ।
तनिक रचना निहारी मैंने।
अपने फितरत को कायम किया।
आंखें खोली मन चिन्तन से।
देखा नया सवेरा हुआ।
#रचना का समय
#DawnSun