ज़िन्दगी के हर मोड़ पे नए रास्तों को खुलते देखा है,
माल ओ ज़र के सामने मंजिल से लोगों को भटकते देखा है ।।
शहद रख कर ज़ुबां पर ज़हर की तिजारत करने वाले ,
ऐसे आस्तीन के सांपों को बारहां कुचलते देखा है ।।
जिन्हें है नाज़ अपनी चंद रोजा इंतेकामी बहारों पर ,
ऐसे मगरूरों को अक्सर सहरा ए जिल्लत में तड़पते देखा है ।।
बहुत ही मशहूर है कहावत उससे कुछ सीख ले राशिद,
गड्ढा जो खोदते हैं दूसरों के खातिर खुद उन्हें गिरते देखा है ।।
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