संस्कारों के बोझ तले, दब गयी जिंदगी, अब जो बचा ह | हिंदी शायरी

"संस्कारों के बोझ तले, दब गयी जिंदगी, अब जो बचा है उसे साँसे कहूँ, या समझौता । ©R."

 संस्कारों के बोझ तले,
दब गयी जिंदगी, 

अब जो बचा है उसे साँसे कहूँ,
या समझौता ।

©R.

संस्कारों के बोझ तले, दब गयी जिंदगी, अब जो बचा है उसे साँसे कहूँ, या समझौता । ©R.

#She_and_Society #unkahikahani

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