प्यास दरस की अखियन बैठी
रंग न कोऊ नीको लागे
चौखट पे बैठी चितवत उसको
सखियां प्रियतम से रंगि-रंगि आवे
प्यास दरस की अखियन बैठी
रंग न कोऊ नीको लागे
चौखट पे बैठी चितवत उसको
सखी रे मारो पिया नज़र है आवे
थमि जाए पहर ये थमि जाए धरती
मन पिया रंग रंगि-रंगि जावे
मधुबन होवे मन बनी मैं राधा
सखी रे मैं तो चली अपने कान्हा संगे रास राचावे
उड़ाओ रंग गुलाल मारो पिचकारी
मोहे होली को रंग बड़ो भावे।।
©ABHISHEK YADAV
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