टूटी हुई साइकिल पर, लंबी लंबी दूरियां नापना, वो भी

"टूटी हुई साइकिल पर, लंबी लंबी दूरियां नापना, वो भी क्या ज़माना था । पास में पैसे हों न हों, पर यारों के साथ समोसे उड़ाना, वो भी क्या जमाना था । घण्टों खड़े होकर अपने उस नुक्कड़ पे, तरह तरह की बातें बनाना, वो भी क्या ज़माना था । ख़ुद की फ़िकर छोड़कर सरे बाजार में, दोस्त को उसके उनसे मिलाना, वो भी क्या ज़माना था । --अश्वनी शर्मा ✍️ ©Ashwani Sharma"

 टूटी हुई साइकिल पर,
लंबी लंबी दूरियां नापना,
वो भी क्या ज़माना था ।

पास में पैसे हों न हों,
पर यारों के साथ समोसे उड़ाना,
वो भी क्या जमाना था ।

घण्टों खड़े होकर अपने उस नुक्कड़ पे,
तरह तरह की बातें बनाना,
वो भी क्या ज़माना था ।


ख़ुद की फ़िकर छोड़कर सरे बाजार में,
दोस्त को उसके उनसे मिलाना,
वो भी क्या ज़माना था ।

--अश्वनी शर्मा ✍️

©Ashwani Sharma

टूटी हुई साइकिल पर, लंबी लंबी दूरियां नापना, वो भी क्या ज़माना था । पास में पैसे हों न हों, पर यारों के साथ समोसे उड़ाना, वो भी क्या जमाना था । घण्टों खड़े होकर अपने उस नुक्कड़ पे, तरह तरह की बातें बनाना, वो भी क्या ज़माना था । ख़ुद की फ़िकर छोड़कर सरे बाजार में, दोस्त को उसके उनसे मिलाना, वो भी क्या ज़माना था । --अश्वनी शर्मा ✍️ ©Ashwani Sharma

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