इन बासी मुस्कानों में पीड़ा का आभास है
इन दरकते मकानों में बरसों का एहसास है
जब नींव हिलती है तो हर ईंट गिर जाती है
आज सभ्यता संस्कृति मानो एक परिहास है
माना कि अब पुरानी चीजों का फैशन चला गया है
अब घर के नल का पानी भी खारा हो गया है
प्यूरीफाइड पानी के साथ बहुत कुछ मर जाता है
युवा पीढ़ी के विचार ज्यादा ही शुद्ध कर जाता है
लाभ हानि वाले सभी तत्व मर जाते हैं
इसलिए अपने पराए के एहसास भी मर जाते हैं
हाँ पुरानी चीजें जो सड़ जाती हैं उन्हें फेंकना पड़ता है
परिवर्तन के लिए नवीनता को अपनाना पड़ता है
क्योंकि प्रकृति भी जड़ होना नहीं चाहती
नदी भी अविरल धारा रोकना नहीं चाहती
पर जो प्राचीन है प्रासंगिक है जो मानवता का अनुषांगिक है
उसे समाप्त मत होने दो
नैतिक मूल्य सदाचार सदव्यवहार इनकी आज भी जरूरत है
इनका अवसान कतई मत होने दो
#मूल्य परिवेश परिवर्तन