इस देश में ऐसे बहुत से लोग हैं, जो हालात के मारे हैं, उनके दिल से निकली आह उनके दिल से निकली आवाज इस कविता में है.................................................. ये भ्रष्टाचार है, इसे रोके कैसे? पानी में फैला हो जहर जैसे, है ये वैसे,................. एक को पकड़े तो दूसरा भी भ्रष्टाचारी है, गौर से देखें तो यहां भ्रष्टाचारों की सवारी है, ये सब लोग पैसों के यार हैं, ये भ्रष्टाचार है,....................... यहां मिलता है इंसाफ बस पैसे वालों को ही, बिन पैसे हैं भटकते राही, इंसानों से नहीं पैसों से प्यार है, ये भ्रष्टाचार है................................... यहां पैसे वालों को सब करते हैं सलाम, कुछ पैसों के लिए बनके रहते हैं गुलाम,इस में न जीत है न हार है, ये भ्रष्टाचार है,..................................... ऊपर से नीचे तक कितने ही भ्रष्टाचारी हैं, उन्हें हम तो देख लिए , अब ऊपर वाले की बारी है, रिश्वत से जो मिलता पुरस्कार है, वो भ्रष्टाचार है..... कवि एकाग्र हेगड़े
©santosh hegde
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