यह शोर,यह कोलाहल कैसा? सर्द रातों में तपती लू जैस | हिंदी कविता

"यह शोर,यह कोलाहल कैसा? सर्द रातों में तपती लू जैसा| इस महासागर में पतवार थामे लहरों के थपेड़े खाते थक चुकी हूँ| थोड़ा सा आराम चाहिए मन को विश्राम चाहिए| बरगद की छांव में सुकून की मुस्कान चाहिए| अलका दूबे*✍🏻 ©Alka Dubey"

 यह शोर,यह कोलाहल कैसा?
 सर्द रातों में तपती लू जैसा|
इस महासागर में पतवार थामे
लहरों के थपेड़े खाते थक चुकी हूँ|
थोड़ा सा आराम चाहिए मन को विश्राम चाहिए|
बरगद की छांव में सुकून की मुस्कान चाहिए|

अलका दूबे*✍🏻

©Alka Dubey

यह शोर,यह कोलाहल कैसा? सर्द रातों में तपती लू जैसा| इस महासागर में पतवार थामे लहरों के थपेड़े खाते थक चुकी हूँ| थोड़ा सा आराम चाहिए मन को विश्राम चाहिए| बरगद की छांव में सुकून की मुस्कान चाहिए| अलका दूबे*✍🏻 ©Alka Dubey

#जिंदगी

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