सिमट कर रहे यादों में तुम्हारी सालों से हकीक़त जो | हिंदी कविता

"सिमट कर रहे यादों में तुम्हारी सालों से हकीक़त जो इक रोज बहा के ले चली साथ अपने तोह जिंदगी का आशय समझ आया बनती रही राहों में कटपुतलिया बंधनों की अनेकों नजाने लड़ते रहे अनगिनत ख्वाहिशों के लिए जीवन कटा अच्छा बुरा उम्र जो बीती इक वक्त तोह जीने का आशय समझ आया ©Yãsh BøRâ"

 सिमट कर रहे यादों में तुम्हारी सालों से
हकीक़त जो इक रोज 
बहा के ले चली साथ अपने
तोह जिंदगी का आशय समझ आया

बनती रही राहों में कटपुतलिया बंधनों की 
अनेकों नजाने
लड़ते रहे अनगिनत ख्वाहिशों के लिए
जीवन कटा अच्छा बुरा
उम्र जो बीती इक वक्त तोह
जीने का आशय समझ आया

©Yãsh BøRâ

सिमट कर रहे यादों में तुम्हारी सालों से हकीक़त जो इक रोज बहा के ले चली साथ अपने तोह जिंदगी का आशय समझ आया बनती रही राहों में कटपुतलिया बंधनों की अनेकों नजाने लड़ते रहे अनगिनत ख्वाहिशों के लिए जीवन कटा अच्छा बुरा उम्र जो बीती इक वक्त तोह जीने का आशय समझ आया ©Yãsh BøRâ

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