آگ जिनकी नज़रों से नज़रे मिलने पर जरा भी न घबराई थी..
समझ में उतर रहें हैं हम,तसल्ली.. उन्होंने भी दिलवाई थी..
भर कर मुट्ठी में इत्मीनान से मिट्टी..
उनकी ओर देखती आंखों में वो धूल झोंक गए
उखाड़ कर आशियाने से लकड़ियां..
शमशान में वो जलती चिता पर छोड़ गए
©Yamini Thakur
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