White लालच जिसके मन में धर कर जाती | हिंदी कविता

"White लालच जिसके मन में धर कर जाती होता है कभी संतृप्त नहीं सुख से कटते हैं दिन उसके जो हो लालच में लिप्त नहीं तन है जब तक जीवित अपनी अभिलाषा शांत नहीं होती लालसा पर करती हद को जब तक होते विक्षिप्त नहीं हम भटक रहे कुछ पाने को मिलते ही भटकने फिर लगते ये भाग दौड़ रहती तबतक जबतक हम होते रिक्त नहीं छल कपट दंभ से भर जाते अपनों से बैर कर लड़ जाते बेखुद पर प्यास नहीं बुझती हमको मिलती है तृप्ति नहीं ©Sunil Kumar Maurya Bekhud"

 White               लालच

जिसके मन में धर कर जाती
होता है कभी संतृप्त नहीं
सुख से कटते हैं दिन उसके
जो हो लालच में लिप्त नहीं

तन है जब तक जीवित अपनी
अभिलाषा शांत नहीं होती
लालसा पर करती हद को
जब तक होते विक्षिप्त नहीं

हम भटक रहे कुछ पाने को
मिलते ही भटकने फिर लगते
ये भाग दौड़ रहती तबतक
जबतक हम होते रिक्त नहीं

छल कपट दंभ से भर जाते
अपनों से बैर कर लड़ जाते
बेखुद पर प्यास नहीं बुझती
हमको मिलती है तृप्ति नहीं

©Sunil Kumar Maurya Bekhud

White लालच जिसके मन में धर कर जाती होता है कभी संतृप्त नहीं सुख से कटते हैं दिन उसके जो हो लालच में लिप्त नहीं तन है जब तक जीवित अपनी अभिलाषा शांत नहीं होती लालसा पर करती हद को जब तक होते विक्षिप्त नहीं हम भटक रहे कुछ पाने को मिलते ही भटकने फिर लगते ये भाग दौड़ रहती तबतक जबतक हम होते रिक्त नहीं छल कपट दंभ से भर जाते अपनों से बैर कर लड़ जाते बेखुद पर प्यास नहीं बुझती हमको मिलती है तृप्ति नहीं ©Sunil Kumar Maurya Bekhud

#लालच

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