ये बढ़ी बढ़ी सी दाढ़ी और ये बिखरे बाल न होते।
दिल न दुःखता जेब में पैसे होते हम कंगाल न होते।
हिमाचल की तरह शान्त और ख़ूबसूरत होती ये ज़िंदगी ।
तुम न आते ज़िंदगी में तो रोज़ कश्मीर से बवाल न होते।।
©ब्राह्मण आशीष उपाध्याय
ये बढ़ी बढ़ी सी दाढ़ी और ये बिखरे बाल न होते।
दिल न दुःखता जेब में पैसे होते हम कंगाल न होते।
हिमाचल की तरह शान्त और ख़ूबसूरत होती ये ज़िंदगी ।
तुम न आते ज़िंदगी में तो रोज़ कश्मीर से बवाल न होते।।
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