मेरी यात्रा  निर्भीकता से पुर्ण होकर  | हिंदी शायरी

"मेरी यात्रा  निर्भीकता से पुर्ण होकर  दुर्गम पथ पर चल पड़ा, पराजय स्वीकार किया कभी ना आगे बस बढता रहा.. जीवन यात्रा आरम्भ हुई तो बाधाएं थी समक्ष खड़ी, परिश्रम का हाथ थामा तब मैं कष्ट, पीड़ा क्षणभंगुर थी.. मेरी यात्रा चलती रहेगी  जब तक तन में प्राण है, सुखद अनुभूति होती हैं अब लगता यहीं सम्मान है.. ©Bhavesh Thakur Rudra"

 मेरी यात्रा 

निर्भीकता     से     पुर्ण    होकर 
दुर्गम    पथ    पर    चल    पड़ा,
पराजय स्वीकार किया कभी ना
आगे      बस      बढता      रहा..

जीवन  यात्रा  आरम्भ  हुई  तो
बाधाएं    थी    समक्ष     खड़ी,
परिश्रम  का हाथ  थामा तब मैं
कष्ट,   पीड़ा     क्षणभंगुर    थी..

मेरी   यात्रा    चलती     रहेगी 
जब   तक   तन   में   प्राण  है,
सुखद  अनुभूति  होती हैं  अब
लगता     यहीं     सम्मान     है..

©Bhavesh Thakur Rudra

मेरी यात्रा  निर्भीकता से पुर्ण होकर  दुर्गम पथ पर चल पड़ा, पराजय स्वीकार किया कभी ना आगे बस बढता रहा.. जीवन यात्रा आरम्भ हुई तो बाधाएं थी समक्ष खड़ी, परिश्रम का हाथ थामा तब मैं कष्ट, पीड़ा क्षणभंगुर थी.. मेरी यात्रा चलती रहेगी  जब तक तन में प्राण है, सुखद अनुभूति होती हैं अब लगता यहीं सम्मान है.. ©Bhavesh Thakur Rudra

मेरी यात्रा 

निर्भीकता से पुर्ण होकर 
दुर्गम पथ पर चल पड़ा,
पराजय स्वीकार किया कभी ना
आगे बस बढता रहा।

जीवन यात्रा आरम्भ होते ही

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