ना मान मिला , सम्मान मिला,
जहरीले कटाक्ष, चेहरा बेहाल मिला।
कोमल हृद्य नें बाह उठाई,
बेसुध जीव को राह दिखलाई।
मुश्क़िल वर्णन, अज्ञात है तन,
कुंदन देह भीतर बेज़ान है मन।
ना जग की सुध, ना अपनों की समझ,
कोस रही बस अंतर्मन।
मरहम सहेज चंदन लेप फ़िर,
प्रज्वलित हो उठा शूरवीर।
शोध सुंदरता परे हटाया,
अपने मन का बोध कराया।
©PRIYANSHI MITTAL
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