जिमि सरिता सागर महुं जाही।
जद्यपि ताहि कामना नाहीं।।
तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएं।
धरमसील पहिं जाहिं सुभाएं।।
अर्थात् यद्यपि समुद्र ने जल की कभी कामना नहीं की परन्तु फिर भी नदियाँ स्वतः ही उसमें समा जाती है एवं वह सदा जल से भरा ही रहता है। इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति धर्म का पालन कर अपने को सुयोग्य बना ले तो उसे सुपात्र जान कर धन संपत्ति स्वयं ही उसके पास आ जाती है।
©विधायक जी साहब
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